Monday, June 6, 2011

रामलीला मैदान पर सोनिया-मनमोहन सरकार की स्वामी रामदेव के विरुद्ध बर्बर और अनैतिक कार्यवाही

गत शनिवार की रात्रि में निशाचरों की भाँति सोनिया - मनमोहन सरकार के द्वारा स्वामी रामदेव जी और अन्य सत्याग्रह में रत सेनानियों के साथ किया गया बर्बर व्यवहार निंदापूर्ण तो है ही, साथ ही यह व्यवहार दिल्ली सरकार की मानसिकता भी उजागर करता है।

विगत 6 दशकों से महात्मा गांधी के नाम पर शासन को अपने क़ब्ज़े में रखने वाली काँग्रेस की सरकारें भोले भाले देशवासियों को गुमराह करती रहीं हैं। सत्य और अहिंसा की दुहाई देकर काँग्रेस भ्रष्ट, हिंसक, और देशद्रोही तत्वों के साथ साँठ गाँठ कर देश का अनहित करने वाले कदम उठाती रही है। अब समय आ गया है कि काँग्रेस के हाथ से देश की सत्ता वापस ले ली जाये।

देश में दिल्ली की सत्ता का निर्धारण वोट के द्वारा होता है। हमें इसी वोट पर अपनी शक्ति केंद्रित करनी होगी। हमें राष्ट्रवादी और देश हित में कार्य करने वाली ताकतों को सत्ता देनी होगी। जिले - जिले और गाँव - गाँव में यह बात पहुंचानी होगी कि काँग्रेस एक बर्बर, देश का अनहित करने वाली , सांप्रदायिक आधार पर देश को बाँटने वाली, जाति के आधार पर समाज को तोड़ने वाली और सोनिया गांधी के वैयक्तिक हित में रत एक तानाशाह शक्ति है जिसका महात्मा गांधी से कोई लेना देना नहीं है।


आइए इस कार्य को पूरा करने का संकल्प ले कर आगे बढ़ें, एकजुट हों, और विजयी हों।

Saturday, October 23, 2010

अरुंधती रॉय - भारत विरोधी राष्ट्रद्रोही लेखिका

 दुर्जन एवं सर्प में यदि चुनाव करना हो तो सर्प का चुनाव करना उचित  होगा न कि दुर्जन का  क्योंकि सर्प मृत्यु का समय आने पर ही डंसता   है जबकि दुर्जन व्यक्ति हर कदम पर डंसता  है .           (चाणक्य नीति  , ३.४ )
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आह्वान!

जनमत जनशक्ति साथ हो
राष्ट्रप्रेम की अनुभूति लिए तब
करते सेवा जन - जन  की
तुम आना रण विजय घोष को ।

रोको उन बेगानों को जो नहीं मानते...
करते स्वागत द्रोही जन  का वे 
और बेचते नित राष्ट्र हमारा
स्वार्थ लोलुप बन बाज़ारों में ।

जनमत जनशक्ति साथ हो
भर हुंकार उठा पतित को
समरस समाज की रचना कर
तुम आना रण विजय घोष को ।

कितना लहू  बहाया
कितना दुःख उठाया
उन देशभक्त दीवानों ने स्वातंत्र्य अग्नि में
निज को होम  चढ़ाया ।

जनमत जनशक्ति साथ हो
उठा कदम निश्चय से भर
तुम निडर बढ़ जाना पथ पर
ओ भारत के रक्षक।


Friday, October 22, 2010

जय जय विपक्ष …!

राष्ट्रमण्डल  खेल एवं केंद्र में विपक्ष की भूमिका के सन्दर्भ में एक विचित्र परिस्थिति बन रही है …

राष्ट्रमण्डल खेलों में हुए काम के लिए क्या भाजपा के पास ठेके देने के अधिकार थे ? आशा है कि उत्तर ‘न’ होगा .

क्या भाजपा के पास भुगतान के अधिकार थे ? आशा है कि उत्तर ‘न’ होगा .

तब फिर यह सब अधिकार किसके पास थे ?

निश्चय ही यह अधिकार दिल्ली राज्य में कांग्रेस की माननीय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सरकार और केंद्र में माननीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के पास थे .

तब फिर भ्रष्टाचार की जाँच में अभी तक इन सरकारों के सम्बद्ध मंत्रियों, अधिकारियों एवं सुरेश कलमाड़ी (वह भी कांग्रेस के लोक सभा सदस्य हैं ) के साथ जुड़े लोगों के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही क्यों नहीं हो रही ? दूरदर्शन के किसी चैनल पर क्या किसी ने कुछ भी इस विषय में सुना ?

क्या यह जांच विपक्षी दलों एवं आम जनता के विरुद्ध होगी और निष्कर्ष में क्या सत्तारूढ़ सरकारें निर्दोष पायी जायेंगी ?

अगर ऐसा हुआ तो यह विश्व इतिहास में एक अनूठी घटना होगी .

यह घटना सिद्ध कर देगी कि देश विपक्ष चलाता  है . सरकार तो केवल मूक दर्शक होती है . सारे अधिकार विपक्ष के पास होते हैं . सरकार तो केवल हाँ में हाँ मिलाती है . सारे सरकारी अधिकारी विपक्ष के कहने पर कार्य करते और पैसे बाँटते हैं, सरकार के मंत्रियों को वह कुछ नहीं मानते . लोकतंत्र का एक नया रूप प्रस्तुत होगा और आने वाले समय में इस उदाहरण के चलते लोग विपक्षी दलों के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए कुछ भी करने को तैयार होंगे . कोई सरकार में रहना ही नहीं चाहेगा . जैसे ही सरकार बनेगी लोग दल बदल कर विपक्ष में आ जायेंगे . किताबों में बच्चे विपक्ष के नेता का नाम पढ़ा करेंगें … जय जय विपक्ष !

लेकिन अब विपक्ष राष्ट्रमण्डल खेलों के भ्रष्टाचार के आरोपों से कैसे बचेगा ? शायद जाँच दल भी अंततः  विपक्ष की ही मानेंगे और हमारा विपक्ष बच जाएगा .

जय जय विपक्ष …!

Monday, October 18, 2010

भ्रष्ट राजनीति और राष्ट्रमण्डल खेल - दिल्ली 2010

अंततः सामान्य भारतीय नागरिक एक शर्मनाक स्थिति की संभावना से बच गया राष्ट्रमण्डल खेल समाप्त हुए और सबने चैन की एक लंबी साँस ली। खिलाड़ियों का प्रदर्शन अच्छा रहा और तकनीकी खराबियाँ लगभग न के बराबर रहीं। जरा सोचिए, खेलों के दौरान विश्व भर में फैले भारतीय मूल के लोग और भारत में रहने वाले सभी एक आशंका  की स्थिति से जूझते रहे कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए ... ।  

आह ... यह मुसीबत बुलाई किसने? निश्चित ही कई लोग इस प्रश्न से भी परेशान रहे होंगे!

अभी थोड़े दिन पहले की ही बात है ... दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित एक दूरदर्शन कार्यक्रम में कुछ इस तरह का बयान देती सुनी गईं की क्या हुआ जो देर हुई, काम हो तो गया न ...! शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री होने के नाते इस पूरे कार्यक्रम के सुचारु रूप से सम्पन्न होने और दिल्ली का मान बनाए रखने के लिए सर्वप्रथम जिम्मेदार होतीं हैं। उनसे ऐसे बयान की उम्मीद  नहीं थी । अब जबकि खेल ख़त्म हो चुके हैं तो वह समस्याओं एवं भ्रष्टाचार की  सारी जिम्मेदारी  सुरेश कलमाडी के ऊपर थोप देना चाहती हैं और खेल में सब अच्छी घटनाओं का श्रेय लेती हुई दिखती हैं ....!

दूसरी ओर सोनिया गांधी काँग्रेस की  माननीय अध्यक्ष हैं जो कि बड़ी ही शालीनता के साथ खिलाड़ियों एवं अन्य अधिकारियों का स्वागत करते हुए सुरेश कलमाडी से दूरी बनाए हुए हैं । राहुल गांधी युवा काँग्रेस के कर्ताधर्ता भी सुरेश कलमाडी से दूर रहते हुए राष्ट्रमण्डल खेलों में भागीदार लोगों से मिलते जुलते देखे जा सकते हैं बस एक कलमाडी ही कहीं नहीं दिखते ।

प्रश्न उठना स्वभाविक है कि यह कलमाडी हैं कौन एवं यह कैसे हो सकता है कि सारे भ्रष्टाचार एवं अनियमितताओं के लिए वही जिम्मेदार हैं ... चारों ओर से हम सभी को यह विश्वाश दिलाने की कोशिश की जा रही है कि यदि कलमाडी को दंडित कर दिया जाये तो बस जिम्मेदारी ख़त्म ।  वास्तव में जनता तो लगभग यह मान ही चुकी है एक रिपोर्ट आ भर जाये और कलमाडी का खेल ख़त्म ।

सामान्य ज्ञान के लिए कलमाडी लोकसभा में पुणे से संसद सदस्य हैं और वह भी सोनिया गांधी की काँग्रेस पार्टी से ! वह काँग्रेस से दशकों से संबद्ध रहे हैं, 1978 में वह महाराष्ट्र प्रदेश युवा काँग्रेस के अध्यक्ष थे । वह एक सक्रिय राजनेता हैं न कि  राजनीति के अंधियारे में खड़े कोई सामान्य कार्यकर्ता । तथ्य तो यह है कि कोई भी काँग्रेसी  नेता इतने महत्वपूर्ण पदों एवं इतने बड़े खेलों का संचालन करने का काम करना तो दूर पास फटक भी नहीं सकता यदि वह काँग्रेस अध्यक्ष की नजरों में अच्छा न माना जाता हो !

यह संभव नहीं है कि कलमाडी और उनके सहयोगी ही एकमात्र इन सारे भ्रष्टाचारों और अनियमितताओं के लिए जिम्मेदार हैं दरअसल कलमाडी को बलि का बकरा बना कर महान एवं बड़े लोगों को बचाने का कार्यक्रम चल रहा है ... अब एक बार फिर जनता के पैसे खर्च कर एक जाँच पड़ताल की जाएगी, कुछ लोगों को नाम मात्र की सजा होगी और खेल ख़त्म ...!

Wednesday, August 18, 2010

हिंदुस्तान की आज़ादी के उपलक्ष्य में फहराया जाने वाला तिरंगा इस देश की मिट्टी में पैदा हुए  देशवासियों के संघर्षों की विजय पताका है । स्वतंत्रता के बाद के पिछले छह दशकों में देश आगे बढ़ता रहा है और आज़ादी की सौगात ने हमारे देश की एक बड़ी आबादी को आगे बढ़ने का मौका दिया है । लेकिन, साथ ही, इस आगे बढ़ने में सफल हिस्से से कई गुना ज्यादा बड़ी संख्या में हमारे ही देश की जनता पिछड़ी और गरीब है । यह एक बड़ी समस्या है और हमें इसका हल जल्दी ही खोजना होगा ।

इस समस्या के समाधान के साथ-साथ हमें एक और बड़ी समस्या को ध्यान में रखना होगा। और वह समस्या है हमारे देश की एकता और अखंडता की । इस समस्या का सबसे ज्वलंत उदाहरण कश्मीर में हिंसा, विघटनवाद, और उग्रवाद है । हमें ध्यान रखना होगा कि कश्मीर की समस्या किसी दूर स्थित जगह पर केंद्रित देश के एक छोटे से हिस्से की छोटी समस्या नहीं है। कश्मीर की समस्या इस देश की छोटी बड़ी बहुत सी समस्याओं की जड़ के समान है।